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HNN/ नाहन

हिमाचल प्रदेश के लिए इससे बड़ी फक्र की बात क्या होगी कि देश की सबसे बड़ी और जयपुर रियासत सिरमौर की जड़े जुड़ी हुई है। सन 1947 से पहले उत्तर भारत की सबसे बड़ी रियासत सिरमौर जयपुर रियासत की ससुराल रही है। मंगलवार को सिरमौर रियासत के 44वें महाराजा लक्ष्यराज प्रकाश अपनी रियासत कालीन राजधानी नाहन के राज महल में पहुंचे। राजमहल पहुंचने पर राजवंश से जुड़े परिवारों और स्थानीय लोगों द्वारा उनका भव्य स्वागत किया गया। इस दौरान राज पंडित रमेश मिश्र के द्वारा उनका तिलक अभिषेक किया गया। स्वागत तिलक के दौरान राजपुरोहित विवेक गौतम और राज परिवार के मुख्य नाग देवता के राज पुजारी रहे मनोज पटेल भी उपस्थित थे।

बता दें कि सिरमौर रियासत के राज महल पर करीब 58 वर्षों के बाद रियासत का ध्वज लहराया गया। जबकि महाराजा लक्ष्यराज जब पहली राजतिलक के बाद करीब 9 वर्ष पूर्व नाहन आए थे तो कुछ देर के लिए रियासत कालीन ध्वज फहराया गया था। महल के प्राची पर ध्वज देखकर पुराने बुजुर्ग महल की तरफ दौड़े चले आए। माना जाता था कि यह ध्वज तभी फहराया जाता था जब महाराजा महल में होते थे। बता दें कि लक्ष्यराज प्रकाश की उम्र 19 वर्ष है। लक्ष्यराज नाहन के महाराजा रहे राजेंद्र प्रकाश की पुत्री जोकि जयपुर राजघराने की अब राजमाता है उनके नाती हैं।

चूंकि, आज भी सिरमौर के बहुत से ऐसे धार्मिक आयोजन और मेले हैं जिनमें राजघराने की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। सिरमौर रियासत के अंतिम शासक महाराजा राजेंद्र प्रकाश का 1964 में निधन हो गया था। वर्ष 2013 तक सिरमौर रियासत की गद्दी परंपरा खाली थी। सिरमौर राजघराने से जुड़े परिवारों के निवेदन पर जयपुर रियासत के महाराजा नरेंद्र सिंह के पुत्र को गोत्र परिवर्तन किए जाने के बाद सिरमौर रियासत का महाराजा घोषित कर उनका राज तिलक किया गया। यह राज तिलक वर्ष 2013 में नाहन में हुआ था। राजतिलक के दौरान देश की नामी-गिरामी हस्तियां भी नाहन पहुंची थी।

राजतिलक के दौरान लक्ष्यराज की उम्र मात्र 9 वर्ष की थी। यहां यह भी बता दें कि राजमाता पद्मिनी देवी के नाती लक्ष्यराज का पहले मानव गोत्र था। चूंकि सिरमौर रियासत के राजवंश भाटी राजपूत थे लिहाजा लक्ष्यराज सिंह का गोत्र परिवर्तन किया गया। जिसके बाद उनका मंगल तिलक हुआ और साथ ही उनका नाम लक्ष्य राज प्रकाश हो गया। यहां यह भी जान लेना जरूरी है कि यह राजवंश प्रकाश वंश था लिहाजा केवल महाराज को ही नाम के साथ प्रकाश लगाने का अधिकार है। जबकि राजघराने परिवार से जुड़े महिला पुरुष कोई भी अपने नाम के साथ प्रकाश नहीं लगा सकता है।

सिरमौर रियासत के राजवंश से पहाड़ी क्षेत्र के लोगों की आज भी आस्था जुड़ी हुई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार आज भी अगर कोई नया मकान बनाता है तो उसमें राज महल की मिट्टी एक संस्कार के तहत जरूर मिलाई जाती है। लक्ष्यराज प्रकाश ने बताया कि उन्हें सिरमौर पधार कर बड़ा अच्छा लगा है। उन्होंने यह भी कहा कि जल्द ही वे महल के दरवाजे आम लोगों के लिए भी एक सीमित दायरे तक जरूर खोलेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि जब जब उन्हें स्कूल से छुट्टियां होंगी वह नाहन जरूर आएंगे।

उन्होंने कहा कि भले ही आज राजाओं का राज ना हो मगर सिरमौर की जनता के साथ उनकी भावनाएं जुड़ी हुई है। यहां के लोगों के लिए मैं कुछ कर पाऊं यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी। बताना जरूरी है कि लक्ष्यराज इंग्लैंड के मिलफील्ड स्कूल में 11वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहे हैं। उनके पिता महाराजा नरेंद्र सिंह गोल्फ के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। जबकि सिरमौर के 44वें 19 वर्षीय महाराजा को क्रिकेट और फुटबॉल खेलने का बड़ा शौक है। महाराजा लक्ष्य प्रकाश करीब 3 या 4 दिन तक सिरमौर प्रवास पर होंगे।

नाहन पहुंचने पर राजघराने परिवार से जुड़े कंवर अजय बहादुर सिंह, कंवर अभय बहादुर सिंह, कंवर नरवीर सिंह, कंवर राजेंद्र सुधीर, सतीश दिलीप, राजेश अनिल, रजक सुधीर आदि भी मुख्य रूप से उपस्थित रहे। बता दें कि सिरमौर रियासत किसी समय उत्तर भारत की सबसे बड़ी रियासत मानी जाती थी। जिसकी सीमाएं उत्तराखंड के कालसी से लेकर आज के हरियाणा के पिंजौर, पंजाब, मोरनी, रामपुर बुशहर के नोगल, सरी सतलुज तक फैली हुई थी। अंग्रेजी शासन और गुरखा युद्ध के बाद सिरमौर रियासत की सीमाएं सिमट गई थी।

इस अंतिम शासक महाराजा राजेंद्र प्रकाश को एक कुशल शासक के साथ-साथ एक बेहतरीन प्रशासक भी माना जाता था। देश का सबसे प्राचीन और पहला तारपीन उद्योग जो आज हिमाचल सरकार के अधीन है इसके अलावा नाहन फाउंड्री भी सिरमौर रियासत की देन है। फॉरेस्ट कंजर्वेशन भू व्यवस्था के अलावा देश की दूसरी नगर पालिका भी राज परिवार की देन मानी जाती है।

इसके अलावा नाहन शहर को सन 1890 के आसपास बगैर किसी मोटर पंप आदि के करीब 50 किलोमीटर दूर से पानी भी पहुंचा कर दिया था। हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ वाईएस परमार भी इसी रियासत के प्रमुख न्यायाधीश हुआ करते थे। बरहाल भले ही राजाओं के राजा खत्म हो गए हो मगर आज भी बहुत सारे ऐसे संस्कार हैं जिसमें राजघरानों को प्रथम स्थान दिया जाता है।