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सिरमौर के हरड़ की मांग न मिलने से बिक्री में भारी कमी, पाकिस्तान के बाद अब…

HNN/ नाहन

जिला सिरमौर के हरड़ की मांग घटने से कारोबारियों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई है। इस बार ना तो जिला की हरड़ की मांग है और ना ही दाम अच्छे मिल रहे हैं। बता दें, हरड़ का व्यवसाय आमदनी का अच्छा जरिया होता है, साथ ही यह काफी लाभदायक भी है। क्योंकि इसका प्रयोग दवाइयों में भी किया जाता है। हरड़ की मांग पाकिस्तान सहित अफगानिस्तान में बहुत रहती है। मगर पाकिस्तान के साथ व्यापार बंद होने से जिला के हरड़ कारोबारियों की मुसीबते बढ़ गई है।

इतना ही नहीं अफगानिस्तान से भी इसकी मांग नहीं आई है जिससे कारोबार प्रभावित हो रहा है। जिला सिरमौर के पच्छाद व नाहन उपमंडल के क्षेत्र की जलवायु हरड़ की पैदावार के लिए उपयुक्त है। मगर प्रदेश सरकार ने हरड़ उत्पादन के लिए कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई। हरड़ उत्पादन के लिए किसानों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। कुछ पौधे तो प्राकृतिक रूप से किसानों के खेतों में उग जाते हैं, जबकि कुछ पौधे हाइब्रिड हरड़ की प्रजाति किसानों द्वारा लगाई गई है।

बता दें, हरड़ का प्रयोग भारत व पाकिस्तान में आयुर्वेदिक दवाइयों के अतिरिक्त त्रिफला बनाने में किया जाता है। भारत तथा पाकिस्तान के लोग हरड़ का उपयोग पाचन शक्ति मजबूत करने की औषधि के रूप में भी करते हैं, जिसके चलते पाकिस्तान में सिरमौर के हरड़ की भारी मांग रहती है। मगर पिछले लंबे समय से भारत व पाकिस्तान के रिश्तो में कड़वाहट आने से जिला सिरमौर के किसानों को हरड़ उत्पादन में काफी नुक्सान हो रहा है।

उधर, किसानों ने बताया इन दिनों हरड़ पककर तैयार है, लेकिन इसकी मांग बेहद कम है। बताया कि हरड़ की मांग न मिलने से इसकी बिक्री में भारी कमी आई है। इस समय किसानों से हरी हरड़ 20 रुपये और भूनी हरड़ 70-80 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदी जा रही है। जबकि, तीन-चार साल पहले भूनी हरड़ के दाम 500 रुपये तक थे।


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