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बांस शिल्प / अजय ने बांस से बनाई सफलता की राह , हुनर से खुद आत्मनिर्भर बने और गांव की महिलाओं को भी सशक्त किया

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Himachalnow / ऊना / वीरेंद्र बन्याल

जज्बा, सीखने की ललक और हुनर से पाई सफलता

अगर किसी के पास कुछ नया करने की इच्छाशक्ति हो और अपने हुनर से समाज को आगे बढ़ाने का जज़्बा हो, तो सफलता सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पूरे समुदाय को प्रेरित और लाभान्वित करती है। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के बंगाणा उपमंडल के अरलू खास पंचायत के दगड़ूं गांव के 43 वर्षीय अजय ने बांस के सुंदर और उपयोगी उत्पादों से अपने जीवन की सजावट की, साथ ही गांव की कई महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाया।

सोशल मीडिया बना बदलाव का माध्यम

अजय ने यूट्यूब का उपयोग नया हुनर सीखने के लिए किया और बांस से सुंदर हस्तनिर्मित वस्तुएं बनानी शुरू कीं। इसके जरिए उन्होंने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि ‘जागृति बैंबू क्राफ्ट’ नाम से एक स्टार्टअप भी शुरू किया, जिससे अन्य लोगों को भी आजीविका का साधन मिला। उनकी मेहनत, इनोवेशन और सीखने की ललक ने उन्हें सफलता की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। आज वे हर महीने 50 से 60 हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं और कई महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण की राह दिखा रहे हैं।

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अजय का सफर: होटल मैनेजमेंट से बांस क्राफ्ट तक

अजय बताते हैं कि उनका सफर बेहद रोचक रहा है। होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 2007 में बद्दी की एक कंपनी में नौकरी की, जहां 2012 तक कार्यरत रहे। फिर वे बंगाणा लौट आए और शिक्षा क्षेत्र से जुड़ गए। 2017 में उन्होंने हर्बल कंपनी की एजेंसी लेकर व्यवसाय शुरू किया, लेकिन 2020 में लॉकडाउन के कारण यह व्यवसाय ठप हो गया।

यूट्यूब से सीखा बांस शिल्प, जागृति बैंबू क्राफ्ट की शुरुआत

लॉकडाउन के दौरान खाली समय का उपयोग करने के लिए उन्होंने यूट्यूब से बांस के उत्पाद बनाने के वीडियो देखे। धीरे-धीरे उन्होंने इस कला में माहिरता हासिल की और इसे व्यवसाय में बदलने का फैसला किया। यहीं से ‘जागृति बैंबू क्राफ्ट’ की शुरुआत हुई

पहला उत्पाद बना सफलता की सीढ़ी

अजय ने सबसे पहला उत्पाद एक टेबल पर रखने वाला तिरंगा झंडा स्टैंड बनाया, जिसे बंगाणा के तत्कालीन बीडीओ को दिखाया। उनकी सराहना से अजय का आत्मविश्वास बढ़ा। इसके बाद उन्हें डीसी ऊना और डीआरडीए का समर्थन मिला। नाबार्ड के 6 महीने के प्रोजेक्ट में उन्हें काम करने का अवसर मिला, जिसके तहत 25 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया

सरकारी सहायता से मिला व्यवसाय को विस्तार

अजय को डीआरडीए और नाबार्ड के सहयोग से प्रदेश के बड़े मेलों में स्टॉल लगाने की सुविधा मिली। हाल ही में उन्होंने मंडी में आयोजित शिवरात्रि मेले और कुल्लू के गांधी शिल्प बाजार में 10 दिनों में 50,000 रुपये से अधिक का कारोबार किया। उन्होंने बंगाणा में एक स्थायी आउटलेट भी स्थापित किया है और अब वे ऑनलाइन बिक्री को लेकर भी प्रयासरत हैं।

तकनीकी सहायता से बढ़ा कारोबार

जिला प्रशासन ऊना ने अजय के हस्तनिर्मित उत्पादों को अधिक परिष्कृत रूप देने के लिए 2 लाख रुपये की मशीनरी उपलब्ध कराई। ग्रामीण विकास विभाग के निदेशक राघव शर्मा ने उनके उत्पादों को विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रदर्शित करने का आश्वासन भी दिया।

सालभर चलने वाला व्यवसाय

अजय बताते हैं कि यह सालभर चलने वाला व्यवसाय है। जब सर्दियों और गर्मियों में कम मेले लगते हैं, तो वे नए उत्पाद तैयार करने में समय लगाते हैं। उनके प्रमुख उत्पादों में सजावटी और घरेलू उपयोग की वस्तुएं शामिल हैं, जिनमें सजावटी शिप मॉडल, ट्रे, फूलदान, मंदिरों के मॉडल, पेन स्टैंड, ईको-फ्रेंडली ब्रश और बुफर, की-चेन और टेबल लैंप शामिल हैं।

बांस की उपलब्धता से आसान हुआ उत्पादन

इस क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से बांस की पैदावार अधिक होती है, जिससे उन्हें कच्चे माल की कोई समस्या नहीं होती। एक 10 फीट के बांस से वे लगभग 30 पेन स्टैंड बना लेते हैं। उनके उत्पादों की कीमत 30 रुपये से 2000 रुपये तक होती है।

बैंबू इंडिया के सीईओ ने सराहा

अजय के कार्य की ‘बैंबू इंडिया’ के सीईओ योगेश शिंदे ने भी सराहना की। वे खुद उनके गांव आए और उनके प्रयासों की प्रशंसा की। इससे अजय को नए उत्पादों में सुधार और विस्तार करने की प्रेरणा मिली

परिवार का मिला पूरा सहयोग

अजय की पत्नी पूजा उनके व्यवसाय में कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। वे बताती हैं कि हर दिन कुछ नया सीखना और उसे व्यवसाय में लागू करना उनकी प्राथमिकता है। इस काम के चलते वे अपने बच्चों की पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दे पाती हैं

गांव की महिलाओं के लिए आमदनी का साधन बना बांस शिल्प

गांव की कई महिलाएं अजय के साथ काम कर रही हैं। इनमें अंकिता, रजनी और ममता समेत अन्य महिलाएं शामिल हैं, जो खाली समय में अजय से काम सीखकर अब खुद की आमदनी कमा रही हैं। उन्हें प्रति उत्पाद भुगतान किया जाता है, जिससे वे हर महीने 5 से 6 हजार रुपये कमा लेती हैं।

प्रशासन का समर्थन और भविष्य की योजनाएं

ऊना के उपायुक्त जतिन लाल का कहना है कि प्रदेश सरकार ग्रामीण युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। बैंबू क्राफ्ट में अजय की सफलता युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। जिला प्रशासन बैंबू आधारित कारोबार को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। ऊना के घंडावल में ‘बैंबू विलेज परियोजना’ के तहत प्रसंस्करण इकाइयां और बांस उत्पाद निर्माण इकाइयां स्थापित की जा रही हैं, जिससे इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।

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