HNN/ नाहन
हिमाचल प्रदेश में भाजपा की डबल इंजन सरकार के द्वारा संभवत काम में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी गई। कोविड के साथ लॉकडाउन के बावजूद जयराम सरकार और उनके मंत्रिमंडल ने विकास की दृष्टि से बेहतर प्रदर्शन किया। बावजूद इसके सरकार को अंतिम चुनावी वर्ष में जिस तरीके से संगठनात्मक सहयोग मिलना चाहिए था वह पूरी तरह विफल रहा। प्रदेश की वास्तु स्थिति के अनुसार बेहतर रणनीति बनाने में संगठन कुछ खास नहीं कर पाया।
संभवत इसके पीछे संगठन के ऊपर केंद्र का या तो दबाव रहा होगा या फिर प्रदेश में संगठन चलाने वालों की काबिलियत एक बेहतर रणनीतिकार की नहीं रही होगी।बाय इलेक्शन के बाद संगठन के पास आत्ममंथन करने का अच्छा खासा वक्त भी था। बावजूद इसके संगठन से जुड़े संगठन मंत्री को जवाबदेही में नहीं लाया गया। हालांकि जगत प्रकाश नड्डा के द्वारा पुराने भाजपाइयों को नए भाजपाइयों के साथ जोड़ने का बेहतर प्रयास किया गया मगर प्रदेश का संगठन उस जोड़ को मजबूती नहीं दे पाया।
प्रदेश में संगठन की निर्णय क्षमताओं के ऊपर कई बार सवालिया निशान लगे। केंद्र शासित प्रदेश को यह अच्छी तरह से मालूम था कि यहां की राजनीति में कर्मचारी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में सरकार को सबसे बड़ी जरूरत कर्मचारियों के लिए एक बेहतर रणनीति की थी। उस रणनीति में सरकार को ना केंद्रीय और ना ही राज्य संगठन का उचित सहयोग मिल पाया। प्रदेश का संगठन राष्ट्रीय मुद्दों के साथ प्रदेश के 2022 रण में उत्तरा हुआ था।
कांग्रेस के मेनिफेस्टो को काउंटर करने के लिए केवल आलोचनाओं पर उतरा रहा। हाटी जनजातीय मुद्दे पर भी इसके ड्रॉबैक्स को ना देखते हुए उल्टा गले की फांस बनवा लिया। इसका सबसे बड़ा नुक्सान भाजपा को अपने एक बेहतर रणनीतिकार नेता को गवा कर हुआ है। डॉ राजीव बिंदल की हार में मुख्य मुद्दा ही हाटी बनाम गुर्जरों की नाराजगी रहा। प्रदेश के संगठन प्रमुख के द्वारा ग्रास रूट के कार्यकर्ताओं के साथ केवल कागजी तथा सम्मेलन और बैठक स्तर पर ही सामंजस्य बिठाया गया ना कि खुद ग्रास रूट यानी फील्ड में उतर कर वास्तु स्थिति को भांपा गया।
इस चीज को ऐसे भी समझा जा सकता है कि प्रदेश में आम जनता के द्वारा भाजपा को भरपूर समर्थन मिला है मगर कर्मचारियों के असहयोग से रिवाज की जगह ताज बदल गया। ऐसे में सबसे बड़ी नैतिक जिम्मेवारी प्रदेश संगठन की बनती है, जिस प्रकार मुख्यमंत्री ने अपना इस्तीफा सौंपा तो वही प्रदेश अध्यक्ष को भी अपना इस्तीफा अभी तक दे देना चाहिए था। वही भाजपा को भी आने वाले वक्त में कम से कम राज्य के संगठन अध्यक्ष को निर्णय क्षमताओं के साथ आत्मनिर्भर बनाना होगा।
इसमें भी कोई शक नहीं है कि यदि सतपाल सिंह सत्ती अथवा राजीव बिंदल के हाथ संगठन की कमान होती तो निश्चित ही सरकार को रिवाज बदलने में बहुत बड़ा सहयोग मिलता और आज प्रदेश में भाजपा की सरकार कायम होती।