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पानी के निजीकरण की मुहिम का सीटू ने किया कड़ा विरोध, सतलुज वाटर प्रोजेक्ट का टेंडर..

SAPNA THAKUR | 10 अक्तूबर 2022 at 11:54 am

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HNN/ शिमला

सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने नगर निगम शिमला के अंतर्गत पानी के निजीकरण की मुहिम का कड़ा विरोध किया है। सतलुज वाटर प्रोजेक्ट का टेंडर स्वेज़ इंडिया कम्पनी को दिया जा रहा है। शिमला शहर के पानी की स्कीम का रखरखाव व वितरण का कार्य अगले काफी वर्षों के लिए बीओटी के तहत इसी कम्पनी के हवाले होगा। इस तरह एसजेपीएनएल के अधीन इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन के ज़रिए कार्यरत सैंकड़ों आउटसोर्स कर्मियों के रोज़गार पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा व उनके रोज़गार की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।

सीटू ने आउटसोर्स प्रणाली पर रोक लगाकर इन कर्मचारियों के नियमितीकरण की मांग की है। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि राजधानी शिमला में 24 घण्टे पानी की सप्लाई देने की आड़ में पानी की व्यवस्था के निजीकरण की पटकथा लिखी जा रही है। सतलुज वाटर प्रोजेक्ट का टेंडर स्वेज़ इंडिया कंपनी को दिया जा रहा है। इस प्रक्रिया में शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड के दायरे में कार्य करने वाले कर्मचारियों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है।

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एसजेपीएनएल में तैनात आउटसोर्स कर्मचारियों को अब दूसरी कम्पनी में शिफ्ट किया जाएगा। आईपीई ग्लोबल नाम की कम्पनी अब इनकी तैनाती करेगी। पहले शिमला जल प्रबंधन निगम कम्पनी ने इन कर्मचारियों को इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन के ज़रिए रखा था। अब इन्हें तीन साल के भीतर ही दूसरी कम्पनी में शिफ्ट किया जा रहा है। इससे 130 से ज़्यादा आउटसोर्स कर्मियों के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है। निजीकरण की इस मुहिम का अगला निशाना सैहब सोसाइटी हो सकती है व इसके तहत कार्यरत सैंकड़ों कर्मचारियों के रोजगार पर भी निकट भविष्य में खतरा मंडराना तय है।

एसजेपीएनएल कम्पनी कहती है कि इन कर्मियों की नियुक्ति की सिफारिश नई कम्पनी से की जाएगी व नई कम्पनी इन कर्मियों के काम को देखकर ही इनकी नियुक्ति करेगी। एसजेपीएनएल के इस तर्क से यह बात साफ हो गयी है कि नई कम्पनी सभी आउटसोर्स कर्मियों को नौकरी पर वापिस नहीं लेगी व परफॉर्मेंस का झूठा तर्क देकर कर्मचारियों को नौकरी से बाहर कर देगी। इससे कर्मचारियों की छंटनी होना तय है। जिन कर्मचारियों को नौकरी पर लिया जाएगा, उन्हें नए सिरे से नियुक्ति दी जाएगी व उनकी वरिष्ठता खत्म हो जाएगी।

इससे उनकी ग्रेच्युटी व आउटसोर्स नीति के तहत नौकरी की सुरक्षा पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि अब आउटसोर्स कर्मियों के रोज़गार के नियमितीकरण के बजाए उन्हें एक अल्प अवधि के फिक्स टर्म रोज़गार की ओर धकेला जाएगा। इस तरह कर्मचारियों की सुरक्षा भारी खतरे में है। उन्होंने इन सभी कर्मचारियों का नियमितीकरण करने व आउटसोर्स प्रणाली पर रोक लगाने की मांग की है।

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