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डॉ परमार के जाते ही उनके जन्म क्षेत्र की कुंडली पर भाजपा- कांग्रेस ने लगाया ग्रहण

प्रदेश में सत्ता सुख भोगने वालों ने ही लिखा क्षेत्र की दर्जनों पंचायतों का दुर्भाग्य

HNN News नाहन

हिमाचल को बनाने वाले डॉ वाईएस परमार के गृह क्षेत्र बागथन आज अपनी बदहाली पर खून के आंसू रोने पर मजबूर है। यही नहीं उनकी जन्मस्थली चनालग से जुड़ी पंचायतें और दर्जनों गांव विकास के मामले में कोसों दूर जा चुके हैं।

नाहन के बनेठी से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखने वाले इंटरनल यूनिवर्सिटी वाले बडू साहिब तथा राजगढ़ तक लोक निर्माण विभाग की सड़क 1981 के बाद से लेकर आज तक पूरी तरह सुधर नहीं पाई है।
बागथन से डूंगा घाट तक 13 किलोमीटर की सड़क पैदल चलने योग्य भी नहीं रही है। कमोबेश यही हाल बाघथन से हिमाचल निर्माता डॉ वाईएस परमार की जन्मस्थली चनालग वाली सड़क का भी यही हाल है।

अब यदि बात की जाए बागथन मे बने वेटनरी हॉर्टिकल्चर , कैटल ब्रीड फार्म और मिल्क चिलिंग प्लांट की बिल्डिंग की तो यह कब गिर जाए कुछ नहीं कहा जा सकता।
हैरान कर देने वाला विषय तो यह है कि यह क्षेत्र जिला की 3 विधानसभा क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है। जिसमें पच्छाद के अंतर्गत कलसेर यह वह क्षेत्र है जो सांसद और पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप के घर से मात्र कुछ किलोमीटर की दूरी पर है।

इसके साथ चावला बोहल, डगाल घाट, सिरला से होकर गुजरने वाली लोक निर्माण की सड़क। यही सड़क बागथन से आगे जाकर चरपड़ी, नहरस्वार, बेचड का बाग रेणुका जी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। इधर नाहन विधानसभा के क्षेत्र के अंतर्गत बनेठी, बांऊटा से भी यही सड़क गुजरती है।

अब दो विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक हैं तो तीसरी में भाजपा की विधायक है। बावजूद इसके यह सड़क हिमाचल निर्माता के निधन के बाद से लेकर आज तक पूरी तरह मुकम्मल नहीं हो पाई है। हालांकि शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद सुरेश कश्यप ने बनेठी से लेकर राजगढ़ नेरी पुल लोक निर्माण विभाग की इस सड़क को एनएच में भी डलवाने के लिए प्रस्ताव भेजा था।

मगर ट्रैफिक सर्वे में यह सड़क एनएच से हट गई थी। ऐसे में यदि हिमाचल निर्माता का हवाला देकर इस सड़क का जीर्णोद्धार एनएच के रूप में करवाया जाता तो यह बड़ी उपलब्धि हो सकती थी। यही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाले बडू साहिब की वजह से भी इस सड़क को एनएच में डलवाया जा सकता था।

इस सड़क पर कई जगह इतने खतरनाक ब्लैक स्पॉट है जिसकी गिनती नहीं की जा सकती। मजे की बात तो यह है कि यहां हॉर्टिकल्चर का वह सेंटर भी है जहां से हिमाचल के सेब बहुल क्षेत्रों को परिष्कृत किशन के इटली के पौधे तैयार कर दिए जाते हैं।

बावजूद इन सबके सत्ता सुख पाने वाली तमाम सरकारें इस पूरे के पूरे क्षेत्र से दशकों से नजरे चुरा रही है। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा प्रश्न भी उठता है कि जो राज्य अपने निर्माता के गृह क्षेत्र का विकास नहीं करवा पाया वह पूरे प्रदेश के विकास का दावा कैसे कर सकते हैं।

संबंधित क्षेत्र से लगती दर्जनों ऐसी पंचायतें हैं जिनकी सड़कें आज भी टूटी फूटी और कच्ची पड़ी है। यहां यह भी याद दिलाना जरूरी है कि यह वह क्षेत्र भी है जितने रियासत काल से आज तक नाहन शहर को पेयजल उपलब्ध कराकर उनकी प्यास बुझाई है। क्षेत्र के युवाओं के लिए यदि रोजगार की बात की जाए तो पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी की दर भी इसी क्षेत्र की आंकी गई है।
बरहाल जब तक हिमाचल निर्माता का यह गृह क्षेत्र किसी भी सरकार से इस तरह उपेक्षित रहेगा तब तक किसी भी सत्ताधारी सरकार को डॉ वाईएस परमार की जयंती मनाने का भी हक नहीं होना चाहिए।


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