HNN/ नाहन
जिला सिरमौर के ग्रामीण इन दिनों गर्मियों के मौसम में जंगली सब्जियों का भरपूर आनंद उठा रहे हैं। जिला मुख्यालय नाहन के समीपवर्ती गांव में इन दिनों कचनार के वृक्ष फूलों से लदे है। ऐसे में मार्च, अप्रैल और मई माह में लोग स्वादिष्ट व औषधीय गुणों से भरपूर कचनार की सब्जी का पुरा लुफ्त उठाते हैं। कचनार के वृक्ष गांव में घरों के आसपास स्वतः ही उगे होते है। आमतौर पर इसकी कलियों की सब्जी बनाई जाती है।
साथ ही, इसके फूलों का रायता बनाया जाता है, जो खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है, साथ ही इससे रक्त पित्त, फोड़े, फुंसियों की समस्या भी ठीक होती है। कचनार को स्थानीय भाषा में करयाल भी कहा जाता हैं। कचनार की कलियों का आचार बहुत ही स्वादिष्ट होने के साथ-साथ औषधी का काम भी करता है। बता दें कि जिस क्षेत्र में कचनार के पेड़ नहीं पाए जाते हैं, उन क्षेत्रों में रह रहे लोग अपने रिश्तेदारों से कचनार मंगवा रहे हैं, ताकि वे लोग भी इसके स्वाद का आनंद उठा सकें।
हमारे WhatsApp ग्रुप से जुड़ें: Join WhatsApp Group
जिला सिरमौर के अनेकों ऐसे क्षेत्र हैं जहां भारी मात्रा में कचनार पाए तो जाते हैं, लेकिन इसकी क्षेत्र में मार्केटिंग नहीं हो पा रही है। यदि इसकी उचित मार्केटिंग की व्यवस्था की जाए तो लोग कचनार बेच कर अपनी आर्थिकी को भी मजबूत कर सकते हैं। बड़ी बता तो यह है कि कचनार के पेड़ बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं और यहां तक कि बंदर भी कचनार को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाते हैं। आयुर्वेद में इस वृक्ष को चामत्कारिक और औषधीय गुणों से भरपूर बताया गया है।
कचनार के फूल और कलियां वात रोग,जोड़ों के दर्द के लिए विशेष लाभकारी है। जानकारों का कहना है कि, ये बात बिल्कुल सत्य है कि, अगर कचनार की विषेशताएं लोगों को पता चल जाएं, तो आमतौर पर जंगली इलाकों में मिल जाने वाला ये वृक्ष दुर्लभ की श्रेणी में आ जाएगा। आयुर्वेदिक में कचनार की छाल को भी शरीर के किसी भी हिस्से में बनी गांठ को गलाने के इस्तेमाल में लिया जाता है। इसके अलावा, रक्त विकार व त्वचा रोग जैसे- दाद, खाज-खुजली, एक्जीमा, फोड़े-फुंसी आदि में भी इसकी छाल बेहद लाभकारी है।
📢 लेटेस्ट न्यूज़
हमारे WhatsApp ग्रुप से जुड़ें
ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए अभी हमारे WhatsApp ग्रुप का हिस्सा बनें!
Join WhatsApp Group