HNN/ नाहन
हिमाचल प्रदेश वन विभाग व फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून के संयुक्त तत्वाधान में ग्रीन इंडिया मिशन के तहत प्रदेश स्तर की कार्यशाला का आयोजन हुआ। जिला मुख्यालय नाहन में आयोजित हुई इस कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि डायरेक्टर जनरल ऑफ आई सी एफ आर ई देहरादून एफ आर आई अरुण रावत ने शिरकत करी। जबकि पीसीसीएफ हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स हिमाचल प्रदेश अजय श्रीवास्तव कार्यशाला में मुख्य रूप से उपस्थित हुए। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य ग्रीन इंडिया मिशन के तहत चीड़ की पत्तियों को रोजगार परक व जंगलों को आग से बचाना मुख्य रूप से रहा।
डायरेक्टर जनरल ऑफ आईसीएफआरई अरुण रावत ने बताया कि वनों में आज का मुख्य कारण चीड़ की पत्तियां होती हैं। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में 30 लाख मैट्रिक टन से भी अधिक चीड़ की पत्तियां प्राकृतिक रूप से उपलब्ध होती है। मगर कुल चीड़ की पत्तियों का 5 फ़ीसदी भी उपयोग में लाने के बाद लाभप्रद साबित नहीं होता है। उन्होंने बताया कि अब चीड़ की पत्तियों से रेशा बनाए जाने की खोज कर ली गई है। उन्होंने बताया कि इस खोज के बाद चीड़ की पत्तियों के रेशे का शत प्रतिशत उपयोग संभव हो पाएगा।
जिससे ना केवल जंगलों को आग से बचाने में बड़ी मदद मिलेगी बल्कि जंगलों के आसपास रहने वाले किसानों को भी आमदनी का बड़ा जरिया मिलेगा। उन्होंने बताया कि एफ आर आई देहरादून के साइंटिस्ट आई एफ एस डॉक्टर विनीत के द्वारा खोजी गई इस तकनीक को पेटेंट भी करवा लिया गया है। बड़ी बात तो यह है कि रेशा निकालने के लिए आसान व पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रिया अपनाई गई है। इससे भी अच्छी बात तो यह है कि रेशे की लंबाई 20 सेंटीमीटर व रंग पीला होता है। उन्होंने बताया कि यह रेशा बड़ा मजबूत और काफी नरम होता है।
रेशे को कात कर हथकरघा वस्त्र एवं उत्पाद में इस्तेमाल किया जाएगा। जिससे जैकेट, कोट, बटवा, घर के पर्दे, लैंपशेड, कालीन, चप्पल, रसिया, चटाईयां आदि 100 से भी अधिक उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। तो वही प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर हिमाचल प्रदेश फॉरेस्ट अजय श्रीवास्तव ने बताया कि नई खोज के बाद हिमाचल प्रदेश के किसानों को आजीविका का बड़ा साधन उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा कि यह पत्तियां वनों में आग का मुख्य कारण बन कर जय विविधता को हानि के साथ-साथ अनेक हानिकारक कारकों के लिए जिम्मेवार रहती हैं।
मगर इसके व्यापक इस्तेमाल किए जाने के बाद जंगलों को आग से बचाने में भी बड़ी कामयाबी मिलेगी। कंजरवेटर जिला सिरमौर सरिता ने कहा कि चीड़ की पत्तियों से रेशे को बनाने की अनुमानित लागत करीब 90 से 50 रूपए प्रति किलोग्राम आती है। एक किलोग्राम रेशे से कई सुंदर आकर्षक वस्तुएं तैयार की जा सकती हैं। कार्यशाला में हेड ऑफ सिल्वीकल्चर एफ आर आई देहरादून आर पी सिंह, डीएफओ हेड क्वार्टर वेद शर्मा, डीएफओ रेणुका जी उर्वशी ठाकुर, डीएफओ पांवटा साहिब कुणाल अंगरीश, डीएफओ नाहन सौरभ सहित वन अधिकारी व ग्रामीण क्षेत्रों से आए किसान मौजूद रहे।