गिरिपार के ब्राह्मणों के सबसे बड़े गांव ‘टिटियाना’ में 120 साल बाद ‘शांत’ पर्व शुरू

HNN/ शिलाई

जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र शिलाई में स्थित ब्राह्मणों के सबसे बड़े माने जाने वाले गांव ‘टिटियाना’ में 120 साल बाद इतिहास की पुनरावृति होने जा रही है। गांव में स्थित प्राचीन महासू जी महाराज के मंदिर के प्रांगण में शाठी व पाशी का अनोखा मिलन आज शुक्रवार को शुरू हो गया है।

गांव में करीब एक साल पहले कुल देवता महासू महाराज के सुंदर व भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर गांव की सुंदरता को चार चांद लगाता है। इसी मंदिर के प्रांगण में शाठी व पाशी का ऐतिहासिक मिलन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो रहा है। गौर हो कि शाठी कौरव वंशज हैं, जबकि पाशी पांडव वंशज माना जाता है हैं।

हिमालय के पहाड़ों को काली माता का निवास स्थान माना जाता है। काली माता का एक स्वरूप ठारी माता है। ग्रामीणों के मुताबिक माता को खुश व शांत रखने के लिए इस तरह के पर्व का आयोजन किया जाता है। टिटियाना में आयोजित होने वाले शांत का महत्व ये भी है कि यहां दोनों भाई शाठी व पाशी एक जगह एकत्रित हो रहे हैं, लिहाजा पर्व का ऐतिहासिक महत्व बढ़ जाता है।

इस कार्यक्रम के तहत, एक जुलाई को मुख्य कार्यक्रम रखा गया है, लेकिन अनुष्ठान 28 जून से शुरू हो चुके हैं। 30 जून तक गांव में प्रवेश व निकासी की अनुमति नहीं रखी गई थी। घर-घर का हरेक शख्स तैयारी में जुटा हुआ है। गांव टिटियाना में मंदिर के निर्माण व आयोजन के लिए गांव के सरकारी कर्मचारियों ने एक महीने का वेतन दान कर दिया था।

इसके अलावा हरेक शख्स ने सामर्थ्य के मुताबिक आर्थिक आहुति दी है। कार्यक्रम के मुताबिक महासू महाराज व माता ठारी की अनुकंपा से टिटियाना वासी चौंतरे में थाती-माटी के जागरण के महापर्व ‘शांत महायज्ञ अनुष्ठान’ आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की शुरुआत वीरवार को महायज्ञ के साथ हो चुकी थी लेकिन ये अनुष्ठान गांववासियों तक ही सीमित रखा गया है।

शुक्रवार को काली माता की स्तुति व दिव्य शक्ति के जागरण के साथ करीब 120 साल बाद गांव में इस शांत यज्ञ का शुभारंभ हुआ। गांव में स्थित शाठी पाशी के चौंतरे में इस महा आयोजन में ऐसा अनुमान है कि एक जुलाई को 400 गांव के करीब 30 से 40 हजार लोग टिटियाना पहुंचेंगे।

स्थानीय निवासी माया राम शर्मा ने बताया कि इसके लिए दक्षिण हिमाचल के अलावा उत्तराखंड के जौनसार बाबर इलाके तक न्यौते भेजे गए हैं। ‘शांत महायज्ञ अनुष्ठान’ के आयोजन को लेकर पंचायत चुनाव में चौंतरे पर बैठकर ही सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया था। इसी चौंतरे पर शाठी व पाशी के बीच विवाद को सुलझाया जाता था।

विवाद पर समझौता न होने की सूरत में टिटियाना वासियों के निर्णय को अंतिम माना जाता था। चौंतरे पर ठारी माता स्थापित हैं। ठारी माता को न्याय की देवी कहा जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि इन चौंतरों पर ऐतिहासिक फैसले भी लिए गए। 1620 मीटर की ऊंचाई पर बसे टिटियाना गांव की आबादी 2500 के आसपास है।

ऐसी भी मान्यता है कि बाहर से आने वाले मेहमान यदि इसका सेवन एक बार कर लें तो उन्हें हर साल उपस्थिति देनी पड़ती है। ऐसी भी मान्यता है कि जब गांव में शाठी व पाशी के लोग जयकारों के साथ चलते थे तो महासू महाराज का डोरिया उछाला जाता था। जिस पक्ष में ये गिरता था, उस पक्ष में उन्नति होती थी।

महासू महाराज का चौंतरु सांस्कृतिक विरासत

गांव की सांस्कृतिक विरासत पुरानी है। गांव के प्राचीन इतिहास के मुताबिक यह गांव 15वीं शताब्दी से पुराना माना जाता है। ऐसी धारणा है कि 1532 ईस्वी में शेरशाह सूरी के शासन को हटाने के मकसद से सिरमौर रियासत के शासक ने चार चौंतरू का गठन किया था।

इसके दो मुखिया ब्राह्मण बिरादरी से थे, जबकि अन्य दो राजपूत बिरादरी के थे। चार चौंतरू में से मौजूदा में उत्तराखंड के जोनसार में हैं, जबकि दो ट्रांसगिरि क्षेत्र में है। एक चौंतरा संगड़ाह इलाके में भी है।


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