गिरिपार और गिरिआर क्षेत्र में भैयादूज पर्व पर दामाद का ससुराल जाना क्यों माना जाता है विशेष..

HNN / पच्छाद

यूं तो दामाद अपनी ससुराल कभी भी आ-जा सकते हैं परंतु भैयादूज के पर्व पर दामाद का ससुराल में जाने का पच्छाद के गिरिपार और गिरिआर क्षेत्र में विशेष महत्व माना जाता है। इस पावन पर्व पर दामाद अपने ससुराल जाकर अपनी सासू माता को धान की खीलें, अखरोट, चावल व मिठाई भेंट देकर आर्शिवाद प्राप्त करते है। इस पर्व के साथ ही दिवाली का पंच पर्व समापन हो जाता है। गिरिपार और गिरिआर क्षेत्र में भैया दूज को सासू-दामाद भेंट का त्यौहार माना जाता है।

बता दें कि सिरमौर जिला के गिरिपार की 135 पंचायतों में भैया दूज पर्व पर दामाद द्वारा सासू माँ को भेंट देने की अनूठी प्रथा बदलते परिवेश में आज भी कायम हैं। हालांकि अब यह प्रथा कुछ कम होने लगी है। फौजी और नौकरी पेशा में होने के कारण अनेक दामाद भैयादूज पर अपनी सासू मां को भेंट देने नहीं पहुंच सकते हैं। ऐसे में दामाद गयास पर्व तक कभी भी सासू को भेंट दी जा सकती है।

गिरिपार और गिरिआर क्षेत्र में  मनाई जाने वाली दूज की बात ही अलग है। गिरिपार के साथ लगते सिरमौर के सैनधार इलाके में भी यह परम्परा सदियों से कायम है। नवविवाहिता जोड़ों के अलावा वर्षों पहले शादी कर चुके दामाद भी इस दिन अपनी सास को भेंट देते हैं, हालांकि सास चाहें तो अपने दामाद को हर साल इस परंपरा को न निभाने की छूट दे सकती है। दिवाली के पंच पर्व पर लोग अपने आराध्य देव की प्रसन्नता के लिए जागरण करते हैं जिसे स्थानीय भाषा में घैना कहते हैं।

जागरण अथवा घैना जागने के बहाने करियाला, ड्रामा का भी आयोजन किया करते थे। अतीत में रामायण धारावाहिक प्रसिद्ध होने पर पूरी रात टीवी अथवा एलईडी पर रामायण दिखाई जाती थी । गिरिपार क्षेत्र में इसे छोटी दिवाली के नाम से जाना जाता है और बड़ी अथवा बुढ़ी दिवाली ठीक एक महीने उपरांत अमावस्या को समूचे क्षेत्र में बड़े हर्षोंल्लास के साथ मनाते हैं ।


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