HNN/कुल्लू
कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा अपनी अनोखी परंपराओं और रंगारंग समारोहों के लिए प्रसिद्ध है। इस अवसर पर निरमंड खंड के सात देवी-देवता 200 किलोमीटर का पैदल सफर कर दशहरा में शिरकत करते हैं। इनमें चार सगे भाई-बहन हैं, जो दशहरा की परंपरा का निर्वहन करने के लिए रघुनाथ की नगरी अठारह करड़ू सौह में विराजमान रहते हैं।
इन देवी-देवताओं में देवता चंभू रंदल, देवता चंभू कशोली, देवता चंभू उरटू और माता भुवनेश्वरी भाई-बहन हैं। इसके अलावा देवता शरशाही नाग, देवता सप्त ऋषि, देवता मार्कंडेय ऋषि नोर और देवता कुई कंडा नाग भी दशहरा में शिरकत करते हैं। ये देवी-देवता लालचंद प्रार्थी कलाकेंद्र के समीप स्थापित अस्थायी शिविरों में लंका दहन की परंपरा का निर्वहन होने तक श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे।
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देवताओं के कारकूनों और हारियानों के अनुसार दशहरा में देवी-देवता सैकड़ों सालों से आ रहे हैं और देवालयों से निकलने से लेकर वापस पहुंचने तक कम से कम 15 दिन का समय लग जाता है। यह परंपरा 374 सालों से निरंतर जारी है, जो कुल्लू दशहरा की महत्ता और धार्मिक महत्व को दर्शाती है।
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