सेंट्रल ओर स्टेट के जॉइंट इंस्पेक्शन में 64 में से 38 पर हुआ एक्शन
HNN News नाहन
हिमाचल प्रदेश फार्मा हब इन दोनों भारी मानसिक और आर्थिक तनाव से गुजर रहा है। वजह है आरबीआई यानी रिस्क बेस इंस्पेक्शन। हालांकि यह इंस्पेक्शन सीडीएसओ और राज्य ड्रग अथॉरिटी के साथ मिलकर देश के लगभग सभी राज्यों में चलाया जा रहा है। बावजूद इसके हिमाचल प्रदेश में हुए 64 जॉइंट इंस्पेक्शन में 38 उद्योगों पर कार्यवाही भी की गई है। इनमें से कुछ को शो कॉज नोटिस भी दिया गया है।
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यहां यह भी बता दें कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में भी कई ऐसे फार्मा उद्योग हैं जो अभी भी पुराने ही पैरामीटर पर चल रहे हैं बावजूद उसके वहां पर सूत्रों के मुताबिक फिलहाल शो कॉज नोटिस के नाम पर लंबा टाइम भी दिया गया है। माना यह जा रहा है जो राज्य कांग्रेस या अन्य गैर भाजपा शासित हैं वहां पर किए जा रहे रिस्क बेस इंस्पेक्शन में कार्यवाही भी फौरन अमल में लाई जा रही है। हालांकि केंद्र और राज्यों के साथ मिलकर जो दवा निर्माता की गुणवत्ता को डब्ल्यूएचओ के पैरामीटर के समक्ष बनाया जाना है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और सीडीएसओ का मानना है कि देश में बनाई जाने वाली दवाएं पब्लिक सेफ्टी और पब्लिक हेल्थ के अनुरूप होनी चाहिए। यही नहीं जिन उद्योगों में इन दावों का निर्माण होता है उनके पैरामीटर भी डब्ल्यूएचओ मानकों के अनुरूप होने चाहिए। देखा जाए तो बात तो बिल्कुल सही है बावजूद इसके सोचने वाली बात तो यह भी है कि जब सब स्टैंडर्ड को लेकर सैंपल लिए जाते हैं तो ऑल ओवर इंडिया की परसेंटेज में हिमाचल प्रदेश की परसेंटेज सिर्फ 1.5 है जबकि अदर स्टेट यानी ओवरऑल हिमाचल को छोड़कर बात की जाए तो यह परसेंटेज 3.16 है।
हिमाचल प्रदेश ड्रग अथॉरिटी अपने अच्छे खासे लाभ लश्कर के साथ अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर कार्य भी कर रही है। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हिमाचल प्रदेश की बनी हुई दवाइयां की सबसे ज्यादा डिमांड भी रहती है। ऐसे में जब रिस्क बेस इंस्पेक्शन किया जा रहा है तो इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी को लेकर शो कॉज नोटिस का समय भी एज पर रूल दिया जाना चाहिए। मगर प्रदेश में किए जा रहे हैं जॉइंट इंस्पेक्शन में फॉरेन कार्यवाही अमल में लाई जा रही है। सवाल तो यह उठता है कि यदि इंफ्रास्ट्रक्चर की वजह से संबंधित दवा सब स्टैंडर्ड निकल जाती है तब उसे प्रोडक्ट को बंद किया जाना चाहिए।
जाहिर सी बात है फार्मा यूनिट चलने वाले उद्योगपति जब में अलादीन का चिराग डालकर तो घूम नहीं रहे होंगे की चिराग घिस कर एक ही रात में वर्षों से चल रही फैक्ट्री को अपडेट कर दिया जाए। अब आपको यह भी बता दें कि अधिकतर उद्योगपति अपने-अपने यूनिट्स को डब्ल्यूएचओ के पैरामीटर के अनुरूप ढालने में लग चुके हैं। नाम न छापने की शर्त में कुछ दवा उद्योगपतियों का कहना है कि जॉइन इंस्पेक्शन किया जाना कोई गलत नहीं है ठीक है। मगर पहले से चल रहे उद्योग को अपडेट करने के लिए कर उसे आधुनिक बनाए जाने को लेकर समय भी दिया जाना जरूरी है।
इन लोगों का कहना है कि प्रदेश का फार्मा उद्योग पूरी निष्ठा और कर्मचारियों के साथ गुणवत्ता परक दवाइयां बना रहा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में बिजली भी अब महंगी हो चुकी है बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी खत्म कर दी गई है। यही नहीं उद्योग विभाग के द्वारा दी जाने वाली जमीन की लीज 95 साल से घटकर 45 वर्ष कर दी गई है। उन्होंने कहा कि ऐसे में 45 वर्ष की लीज के बाद नया यूनिट लगाने वाले को बैंक किसी भी तरह से फाइनेंस नहीं करेगा।
ऐसे में नया इन्वेस्टर प्रदेश में यूनिट लगाने के लिए बिल्कुल भी इच्छुक नहीं होगा। प्रदेश का फार्मा उद्योग मौजूदा समय काफी मानसिक और आर्थिक तनाव से भी गुजर रहा है। फार्मा यूनिट से जुड़े उद्योगपतियों की मांग है कि जिन उद्योगों के जॉइंट इंस्पेक्शन किया जा रहे हैं वहां पर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी को लेकर कुछ समय जरूर दिया जाए।
बरहाल जिस तरीके से केंद्रीय टीम ड्रग मैन्युफैक्चरर्स पर वह भी हिमाचल प्रदेश के दबाव बनाए जाने की कोशिश की जा रही है उससे कहीं ऐसा ना हो कि यहां से फार्मा उद्योग सिमट कर ना रह जाए। उधर राज्य दवा नियंत्रक नवनीत मारवा का कहना है कि प्रदेश में अन्य राज्यों के तरह जॉइंट इंस्पेक्शन चला हुआ है। उन्होंने बताया कि पब्लिक हेल्थ और पब्लिक सेफ्टी को लेकर दवा उद्योगों को अपडेट किया जाना भी जरूरी है।
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