गुप्त बैठक के बाद दो की लड़ाई में तीसरे का बड़ा फायदा, उधर जुब्बल कोटखाई में बगावत
HNN News, Nahan Solan
ऊधर जहां जुब्बल कोटखाई से ऐन वक्त पर चेतन ब्रागटा पत्ता साफ कर नीलम हरेक को मैदान में उतार दिया गया है। तो वही अर्की विधानसभा उपचुनाव में गोविंद राम शर्मा इंडिपेंडेंट एंट्री हो चुकी है ।
पहले जुब्बल कोटखाई पर चर्चा
हालांकि भाजपा जुब्बल कोटखाई सीट पर मंडी का फायदा परिवारवाद का मुद्दा बनाकर कांग्रेस को घेरना चाहती है। मगर यहां भाजपा यह भूल गई है कि रामपुर किन्नौर सुन्नी और बीच का क्षेत्र पूर्व में मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह का गढ़ रहा है। और यह पूरा सेव बहुल क्षेत्र है जो परिवारवाद नहीं भाजपा कि प्रदेश सरकार से नाराज है।
परिवारवाद को हाशिए पर रखते हुए जनता का मूड वीरभद्र परिवार के साथ सिंपैथी वाला ज्यादा है। और उधर भाजपा के द्वारा चेतन का नाम ऐसे वक्त पर सामने आया है जबकि यह विधानसभा क्षेत्र चेतन के नाम पर अपनी सहमति दे चुका था।
ऐसे में चेतन के नाम पर चली तलवार से रामपुर तक संबंध बिगड़ने के आसार पैदा हो चुके हैं।
अब यदि सूत्रों की माने तो जुब्बल कोटखाई की जनता सिंपैथी फैक्टर पर और सरकार के बचे कुछ समय को लेकर चेतन पर सहमति बन चुकी थी। मगर ऐन वक्त पर टिकट का बदला जाना अगर उपचुनाव में नुकसानदायक ना साबित हुआ तो 2022 में तो निश्चित ही भाजपा के लिए घातक साबित होगा।
वहां अर्की उपचुनाव में दोनों प्रमुख दलों में बगावती सुर तेज हो चुके हैं। गोविंदराम शर्मा की प्रेस कॉन्फ्रेंस और अभी कुछ समय पहले हुई एक गुप्त बैठक में दोनों और के नाराज ब्राह्मण राजपूत एक हो चुके हैं। हालांकि गोविंद राम के मैदान में उतरने से पहले अर्की कल्याण संस्था संजय अवस्थी के साथ जुड़ चुकी थी। मगर गोविंद राम के आजाद मैदान में उतरने के बाद समीकरण तेजी से बदल गए हैं।
यहां भाजपा यह भी सोच रही है कि ब्राह्मण वोट बैंक दो जगह बट जाएगा। मगर यहां भाजपा को यह भी सोचना होगा कांग्रेस की ओर से बागी हुए राजेंद्र ठाकुर एक बड़ा दमखम रखते हैं। 1 दर्जन से अधिक पंचायतों में उनका बड़ा प्रभाव भी है। और गुप्त बैठक के बाद यह भी आंकलन लगाया जा रहा है कि यह सारा वोट बैंक गोविंद शर्मा को फायदा पहुंचा सकता है। उधर भाजपा के नुकसान की बात की जाए तो डीकेएम के प्रधान रहे भाजपा के मुख्य नेता को अपनी सरकार के दौरान ही रतनपाल से भारी नुकसान पहुंचा था और उनका प्रधान पद छिन गया था। वही ऑल इंडिया मजदूर संघ के सचिव और प्रदेश कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष रहे एक मजबूत वोट बैंक वाले ठाकुर भी गोविंद शर्मा को फायदा पहुंचाते नजर आते हैं। महिला नेत्री जिसे भाजपा से जिला परिषद का टिकट ना मिलने पर आजाद मैदान में उतरी थी और जीती थी। वह महिला नेत्री भी कहीं ना कहीं रतनपाल को पार्टी का समर्थन जिला परिषद में ना मिलने को लेकर बड़ी वजह मानती है। ऐसे ही एक और बड़ा प्रभावशाली चेहरा राजपूत वर्ग से आता है। यह व्यक्ति भी भाजपा से जिला परिषद सीट के लिए मैदान में उत्तर ना चाह रहे थे। मगर यहां भी उनका पत्ता भाजपा से टिकट के लिए साफ हुआ था। और वह आजाद मैदान में उतरे थे और जीते भी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जिन जिन चेहरों को भाजपा ने कम आंकने की कोशिश करी वे सभी चेहरे जीते हैं। और कहीं ना कहीं आज भी बड़े मजबूत हैं। और यह पूरा का पूरा दल भाजपा के बड़े ठाकुर का भगत माना जाता है।
जाहिर है यह सभी जहां गोविंद शर्मा के ऐलान से पहले संजय अवस्थी के फेवर में जा चुके थे। मगर अब यह सभी लगभग लगभग गोविंद शर्मा के फेवर में खड़े हो चुके हैं।
इससे एक बात तो साफ जाहिर है कि यहां सबसे बड़ा नुकसान भाजपा को होने वाला है साथ ही कांग्रेस को भी बड़ी चुनौती का सामना करना होगा।
बता दें कि इस विधानसभा क्षेत्र में 96000 के आसपास टोटल वोट हैं। जिनमें 40 से 42% राजपूत वर्ग से संबंध रखते हैं और 20 फ़ीसदी ब्राह्मण वर्ग से संबंध रखते हैं। बाकी शेष एससी एसटी ओबीसी का वोट बैंक है। यहां पर जाट वर्ग भी राजपूत लाबी के साथ चलता है।
अब आपको यहां एक बड़ी बात है यह भी बताना चाहेंगे कि जिस जगह पर यह बड़ी बैठक गुप्त रूप से संपन्न हुई है उसमें भाजपा विचारधारा वाले संगठन के प्रति अभी भी निष्ठा रख रहे हैं। मगर घोषित प्रत्याशी के साथ बिल्कुल भी नहीं है।
अब यहां तीसरा फैक्टर भी सक्रिय है वह फैक्टर भाजपा का ही है जो एंटी बिंदल काम करता है। प्रदेश संगठन के द्वारा सोलन नगर निगम के चुनाव के बाद जो अनुशासनात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए थी वह नहीं हुई थी। जाहिर है यही एंटी बिंदल भाजपा गैंग अर्की में भी सक्रिय है।
तो वही भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार जिन्हें रणनीतियों का चाणक्य भी कहा जाता है वह अकी पहुंच चुके हैं। इस बार उनकी रणनीति निश्चित ही इन सभी फैक्टर्स को ध्यान में रखकर तैयार हुई होगी। संभवत उन्हें यह भी मालूम होगा कि यहां भी एंटी बिंदल भाजपा के नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे में प्रदेश संगठन की भी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है कि ऐसे चेहरों को अनुशासन की जद में लाकर कमल की लाज बचाई जा सके।
बरहाल अर्की से भाजपा प्रत्याशी की राहें आसान नजर नहीं आ रही है तो वहीं कांग्रेस प्रत्याशी संजय अवस्थी बनिस्बत भाजपा प्रत्याशी काफी मजबूत है। मगर अब बिगड़े समीकरणों के बाद ऊंट किस करवट बैठ जाए यह कहा नहीं जा सकता। अब यदि किसी भी तरीके से संगठन गोविंद शर्मा को मनाने में कामयाब हो जाता है तो भी प्रभावशाली नाराज चेहरे किसी भी सूरत में रतन पाल के साथ जाते हुए नजर नहीं आते हैं।
वैसे देखा जाए तो जिस प्रकार बीते कुछ दिनों में चर्चे और आंकलन रहे हैं उससे तो यह भी अनुमान लगता है कि कहीं ना कहीं मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष गोविंद शर्मा के नाम पर सहमत थे। मगर बात यहां प्रदेश के संगठन मंत्री के खास की थी। लिहाजा रतनपाल का नाम फाइनल किया गया था। ऐसे में यदि रतनपाल चुनाव हार जाते हैं तो इसका बड़ा फायदा सोलन के एक बड़े गुट को होगा और एक भाजपा के दिग्गज नेता की जोगी कांगड़ा से संबंध रखते हैं उनकी बड़ी फजीहत होगी। जाहिर सी बात है यदि इन दो दिग्गजों की लड़ाई में कई गोविंद शर्मा फायदा उठा जाते हैं तो निश्चित ही यह कांग्रेस की और ना जाकर बड़े ठाकुर में ही अपनी आस्था व्यक्त करेंगे।
बता दें कि आज जो गुप्त बैठक संपन्न हुई है वह एस ठाकुर की अध्यक्षता में हुई है। बरहाल कल नॉमिनेशन फाइल होना है। देखना यह होगा कि गोविंद शर्मा नामांकन दाखिल करेंगे या नहीं मगर यह तो तय है कि इस आपसी लड़ाई में बड़े समीकरण बदल सकते हैं।